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मां शाकुम्भरी शक्तिपीठ, जिसका मतलब शक्ति देवी शाकुम्भरी का निवास है, उत्तर प्रदेश राज्य में सहारनपुर के उत्तर में 40 किलोमीटर की दूरी पर जसमोर गांव के क्षेत्र में स्थित है। इसमें हिंदू देवताओं के दो महत्वपूर्ण मंदिर हैं: एक देवी मां शाकुम्भरी स्वयं और दूसरा, एक भुरा-देव मंदिर, जो कि एक किलोमीटर दुरी पर है, जिसे माताजी का गार्ड माना जाता है इस देवी को समर्पित एक और काफी प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान में समभार झील के पास है। मां शाकुम्भरी देवी का दूसरा बड़ा मंदिर कर्नाटक के बागलकोट जिले के बादामी में स्थित है।
मां शाकंभरी देवी दुर्गा के अवतारों में से एक हैं। दुर्गा के सभी अवतारों में से रक्तदंतिका, भीमा, भ्रामरी, शताक्षी तथा शाकंभरी प्रसिद्ध हैं।
मां शाकंभरी की पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार, एक समय जब पृथ्वी पर दुर्गम नामक दैत्य ने आतंक का माहौल पैदा किया। इस तरह करीब सौ वर्ष तक वर्षा न होने के कारण अन्न-जल के अभाव में भयंकर सूखा पड़ा, जिससे लोग मर रहे थे। जीवन खत्म हो रहा था। उस दैत्य ने ब्रह्माजी से चारों वेद चुरा लिए थे।
तब आदिशक्ति मां दुर्गा का रूप मां शाकंभरी देवी में अवतरित हुई, जिनके सौ नेत्र थे। उन्होंने रोना शुरू किया, रोने पर आंसू निकले और इस तरह पूरी धरती में जल का प्रवाह हो गया। अंत में मां शाकंभरी दुर्गम दैत्य का अंत कर दिया।
शाकम्भरी देवी जी भगवान विष्णु के ही आग्रह करने पर शिवालिक की दिव्य पहाडियों पर स्वयंभू स्वरूप मे प्रकट हुई थी। माता शाकम्भरी के स्वरूप का विस्तृत वर्णन दुर्गा सप्तशती के मुर्ति रहस्य अध्याय मे मिलता है। कहा जाता है कि महाशक्ति ने आयोनिजा स्वरूप मे प्रकट हो शताक्षी अवतार धारण किया। देवी शताक्षी रचना का प्रतीक है।
संक्षेप में....
पुराणों में मां के अनेक रूपों का उल्लेख मिलता है. दुर्गम नामक दैत्य का वध करने के लिए मां देवी ने भ्रामरी देवी का अवतार लिया था।
जब-जब देवताओं और मानवों पर संकट आया है, तब-तब मां भगवती ने विभिन्न रूप लेकर उनकी सहायता की है। पुराणों में मां भगवती के अनेक रूपों का उल्लेख मिलता है! इनमें से भ्रामरी और शाकंभरी माता के अवतार का भी जिक्र है! पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि दुर्गम नामक दैत्य का वध करने के लिए मां भगवती ने भ्रामरी देवी का अवतार लिया था, जिसकी कथा इस प्रकार है....
दैत्य दुर्गम ने मांगा ये वर...
पौराणिक कथा के अनुसार, दुर्गम नामक दैत्य ने वर प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया. इस पर ब्रह्मदेव ने दर्शन दिए और दुर्गम से कहा कि मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हुआ हूं, बताओ क्या वर चाहिए. दुर्गम दैत्य ने ब्रह्मदेव से वर मांगा कि उसे कोई भी नहीं मार पाए, किसी भी अस्त्र-शस्त्र से उसकी मृत्यु ना हो, स्त्री-पुरुष के लिए अवध्य रहूं और दो व चार पैर वाले प्राणी वध न कर सकें! देवताओं पर वह विजय प्राप्त कर सके. ब्रह्माजी ने तथास्तु कहकर उसे सभी वरदान दे दिए!
देवताओं को करने लगा परेशान...
वरदान मिलने के बाद दुर्गम दैत्य को अहंकार आ गया और वह सभी देवताओं को परेशान करने लगा, दुर्गम ने स्वर्ग पर अधिकार जमाने के लिए देवताओं पर अत्याचार शुरू कर दिया, इससे सभी देवता घबरा गए और भगवान शिव के समक्ष पहुंचे! तब भगवान शंकर ने कहा कि उस दैत्य का वध केवल देवी भगवती ही कर सकती हैं, सभी देवता देवी भगवती की उपासना करने लगे!
इस प्रकार पड़ा भ्रामरी देवी नाम...
सभी देवताओं की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी भगवती ने दर्शन दिए. माता देवी के छह पैर थे और वे भ्रमरों (भौंरा) से घिरी हुई थीं! इस कारण देवताओं ने माता को भ्रामरी देवी के नाम से संबोधित किया! देवताओं की पीड़ा देखकर माता ने भ्रमरों को दैत्य का वध करने का आदेश दिया, जिसके बाद पूरा ब्रह्मांड भ्रमरों से घिर गया! असंख्य भ्रमर दुर्गम दैत्य के शरीर से चिपक गए और उसे काटने लगे! कुछ देर बाद दैत्य ने प्राण त्याग दिए. इस प्रकार मां भ्रामरी देवी ने देवताओं की रक्षा की!
दानवों के अत्याचार से वर्षों तक सूखा व अकाल देखकर मां देवी की हजारों आंखों से आंसुओं की बारिश हुई, जिससे फिर से सृष्टि पर हरियाली छा गई. इस वजह से माता का नाम शताक्षी पड़ा! देवी ने अपनी शक्तियों से कई प्रकार की शाक, फल व वनस्पतियों को प्रकट किया, जिससे देवी का नाम शाकंभरी भी पड़ा. हर वर्ष पौष महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को शाकंभरी नवरात्रि मनाई जाती है!
👉 प्रसिद्ध सिद्ध पीठ मां शाकुंभरी देवी मंदिर से संबंधित कुछ प्रश्न....
शाकुंभरी देवी मंदिर किस लिए प्रसिद्ध है?
माता शाकुंभरी देवी सिद्धपीठ एक हिंदू तीर्थस्थल है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार इस शक्तिपीठ का निर्माण भगवान शिव ने अपनी पत्नी सती की याद में उनके पिंड से किया था। सुबह और शाम की आरती यहाँ का विशेष आकर्षण है।
मां शाकुंभरी देवी मंदिर में माता सती का कौन सा भाग गिरा था?
सिद्ध पीठ श्री शाकुंभरी देवी भारत में एक महाशक्ति पीठ है और इसे बहुत शक्तिशाली मंदिर माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि देवी सती का सिर यहीं गिरा था और वर्तमान में यह मंदिर शिव-शक्ति के भक्तों के लिए बहुत महत्व रखता है।
मां शाकुंभरी देवी मंदिर कितना प्राचीन है?
इतिहास में शाकुंभरी देवी मंदिर का सबसे पहला उल्लेख 2500 साल पुराना है, जहाँ कौटिल्य (जिन्हें चाणक्य या विष्णुगुप्त वात्स्यायन के नाम से भी जाना जाता है) ने मंदिर का दौरा किया था और कुछ समय तक वहाँ रहे थे। देवी माँ का निवास स्थान हिमालय की तलहटी में है (जिसे शिवालिक पर्वतमाला के नाम से जाना जाता है)।
मां शाकंभरी माता की पूजा कैसे करें?
पौष मास की अष्टमी तिथि को प्रातः उठकर स्नान आदि कर लें। सर्वप्रथम गणेशजी की पूजा करें, फिर माता शाकम्भरी का ध्यान करें। लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर मां की प्रतिमा या तस्वीर रखें व मां के चारों तरफ ताजे फल और मौसमी सब्जियां रखें। गंगाजल का छिड़काव कर मां की पूजा करें।
शाकंबारी शक्ति पीठ है?
शक्ति पीठ शाकुंभरी, जिसका अर्थ है शक्ति देवी शाकंभरी या शाकुंभरी का निवास , उत्तरी भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में सहारनपुर के उत्तर में 40 किमी की दूरी पर जसमौर गांव क्षेत्र में स्थित है।
शाकंभरी देवी किसकी कुलदेवी है?
बनशंकरी चालुक्य शासकों की कुलदेवी माँ बनशंकरी है। मंदिर मे इनको शाकम्भरी भी कहा जाता है। मंदिर मे काले पत्थर से निर्मित माँ की प्रतिमा है।
7 कुलदेवता कौन-कौन से हैं?
प्रत्येक मन्वंतर में प्रमुख रूप से 7 प्रमुख ऋषि हुए हैं। विष्णु पुराण के अनुसार इनकी नामावली इस प्रकार है
👉 प्रथम स्वायंभुव मन्वंतर में- मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु और वशिष्ठ।
कुलदेवी का मंत्र कौन सा है?
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ नमो भगवते (कुलदेवी या कुलदेवता का नाम) रूपिण्यै (कुलदेवी या कुलदेवता का रूप) स्वाहा।। इस मंत्र की सिद्धि के लिए नवरात्रि, दुर्गा पूजा, दीपावली, शिवरात्रि या अन्य शुभ तिथि पर कुलदेवी या कुलदेवता की पूजा करके कुष्ठ या कमलगट्टा की माला से 108 माला जप करना है।
हिंदू धर्म में माता सती के 51 शक्तिपीठ हैं:
- भारत में 42 शक्तिपीठ हैं
- बांग्लादेश में 4 शक्तिपीठ हैं
- नेपाल में 2 शक्तिपीठ हैं
- श्रीलंका-1, पाकिस्तान-1, और तिब्बत में 1 शक्तिपीठ हैं
देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है, जबकि देवी भागवत में 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का उल्लेख है. तंत्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं!
अर्थ: भौंरा- मादा मधुमक्खी
मंंदिर कैसे पहुंचें:
बाय एयर: अगर आप हवाई जहाज से माँ शाकुम्भरी देवी सहारनपुर की यात्रा करना चाहते हैं तो आप देहरादून हवाई अड्डे से यात्रा कर सकते हैं और देहरादून से आप सड़क या भारतीय रेलवे से यात्रा कर सकते हैं। हवाई जहाज द्वारा नई दिल्ली आईजीआई हवाई अड्डे पर उतरकर सहारनपुर की यात्रा का दूसरा विकल्प है, इसके बाद आप या तो सड़क या भारतीय रेलवे से यात्रा कर सकते हैं यहाँ पहुचने के लिए सहारनपुर जिले में स्थित बेहट बस स्टैंड से बस द्वारा मन्दिर पहुंचा जा सकता है |
ट्रेन द्वारा: यहाँ पहुचने के लिए सहारनपुर रेलवे स्टेशन पर उतरना पड़ता है|
सड़क के द्वारा: यहाँ पहुचने के लिए सहारनपुर जिले में स्थित बेहट बस स्टैंड से बस द्वारा मन्दिर पहुंचा जा सकता है |
Note: माँ शाकुम्भरी देवी चालीसा एवं आरती अगले लेख में आयेगा। एक बार जरूर पढ़े। जय मां भगवती।।
🔱🙏🚩हर हर महादेव! जय सत्य सनातन🔱🙏🚩 जय सनातन धर्म जय जय श्री राम 🚩
__________________________________________________________________________________प्रिय पाठकों, कैसी लगी यह कथा?
आशा करते हैं कि आपको यह कथा पसंद आई होगी। अगली बार फिर मिलेंगे एक और भक्तिपूर्ण कथा के साथ। तब तक अपना ख्याल रखें, मुस्कुराते रहें, और दूसरों के साथ खुशी बाँटते रहें।
दोस्तों आपको मेरे द्वारा लिखे गये लेख कैसे लगे कृप्या अपनी प्रतिक्रिया कमेन्ट मे जरूर दें।
हर हर महादेव।। प्रभु की कृपा हमेशा सब पर बनी रही। 👋हर हर महादेव! धन्यवाद।
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