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मां शाकुम्भरी देवी चालीसा एवं आरती...

मां शाकुम्भरी देवी चालीसा एवं आरती...

एक बार अवश्य पढ़ना .....


 ' जे जे श्री शाकुम्भरी माता '

दोहा

दाहिने भीमा ब्रामरी अपनी छवि दिखाए। बाई ओर सतची नेत्रों को चैन दीवलए।

भूर देव महारानी के सेवक पहरेदार। मां शाकुम्भरी देवी की जाग मई जे जे कार।।

चौपाई

जे जे श्री शाकुम्भरी माता। कोई तुमको सिष नवता ।। गणपति सदा पास मई रहते। विघन ओर बढ़ा हर लेते।।

हनुमान पास बलसाली। अगया टुंरी कभी ना ताली ।। मुनि वियास ने कही कहानी। देवी भागवत कथा बखनी ।।

छवि आपकी बड़ी निराली। बढ़ा अपने पर ले डाली।। अखियो मई आ जाता पानी। एसी किरपा करी भवानी।।

रुरू डेतिए ने धीयां लगाया। वार मई सुंदर पुत्रा था पाया।। दुर्गम नाम पड़ा था उसका। अच्छा कर्म नहीं था जिसका।।

बचपन से था वो अभिमानी। करता रहता था मनमानी।। योवां की जब पाई अवस्था। सारी तोड़ी धर्म वेवस्था ।।

सोचा एक दिन वेद छुपा लूं। हर ब्रममद को दास बना लूं।। देवी-देवता घबरागे। मेरी सरण मई ही आएगे।।

विष्णु शिव को छोड़ा उसने। ब्रह्माजी को धीयया उसने ।। भोजन छोड़ा फल ना खाया। वायु पीकेर आनंद पाया।।

जब ब्रहाम्मा का दर्शन पाया। संत भाव हो वचन सुनाया।। चारो वेद भक्ति मई चाहू। महिमा मई जिनकी फेलौ।।

ब्ड ब्रहाम्मा वार दे डाला। चारों वेद को उसने संभाला।। पाई उसने अमर निसनी। हुआ प्रसन्न पाकर अभिमानी।।

जैसे ही वार पाकर आया। अपना असली रूप दिखाया।। धर्म धूवजा को लगा मिटाने। अपनी शक्ति लगा बड़ाने।।

बिना वेद ऋषि मुनि थे डोले। पृथ्वी खाने लगी हिचकोले ।। अंबार ने बरसाए शोले। सब त्राहि-त्राहि थे बोले।।

सागर नदी का सूखा पानी। कला दल-दल कहे कहानी।। पत्ते बी झड़कर गिरते थे। पासु ओर पाक्सी मरते थे।।

सूरज पतन जलती जाए। पीने का जल कोई ना पाए।। चंदा ने सीतलता छोड़ी। समाए ने भी मर्यादा तोड़ी।।

सभी डिसाए थे मतियाली। बिखर गई पूज की तली ।। बिना वेद सब ब्रहाम्मद रोए। दुर्बल निर्धन दुख मई खोए ।।

बिना ग्रंथ के कैसे पूजन। तड़प रहा था सबका ही मान।। दुखी देवता धीयां लगाया। विनती सुन प्रगती महामाया।।

मां ने अधभूत दर्श दिखाया। सब नेत्रों से जल बरसाया।। हर अंग से झरना बहाया। सतची सूभ नाम धराया।।

एक हाथ मई अन्न भरा था। फल भी दूजे हाथ धारा था।। तीसरे हाथ मई तीर धार लिया। चोथे हाथ मई धनुष कर लिया।।

दुर्गम रक्चाश को फिर मारा। इस भूमि का भार उतरा।। नदियों को कर दिया समंदर। लगे फूल-फल बाग के अंदर।।

हारे-भरे खेत लहराई। वेद ससत्रा सारे लोटाय।। मंदिरो मई गूंजी सांख वाडी। हर्षित हुए मुनि जान पड़ी।।

अन्न-धन साक को देने वाली। सकंभारी देवी बलसाली।। नो दिन खड़ी रही महारानी। सहारनपुर जंगल मई निसनी ।।

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हरि ॐ श्री शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो।।

ऐसी अद्भुत रूप हृदय धर लीजो,

शताक्षी दयालु की आरती कीजो।।

तुम परिपूर्ण आदि भवानी मां, सब घट तुम आप बखानी मां,

शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो।।

तुम्हीं हो शाकुम्भर, तुम ही हो सताक्षी मां,

शिवमूर्ति माया प्रकाशी मां, शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो।।

नित जो नर-नारी अम्बे आरती, गावे मां... 

इच्छा पूर्ण कीजो, शाकुम्भर दर्शन पावे मां, 

शाकुम्भरी अम्बाजी की आरती कीजो।। 

जो नर आरती पढ़े पढ़ावे मां, जो नर आरती सुनावे मां,

बस बैकुंठ शाकुम्भर दर्शन पावे.... 

शाकुम्भरी अंबाजी की आरती कीजो।

🔱🙏🚩हर हर महादेव! जय सत्य सनातन🔱🙏🚩 जय सनातन धर्म जय जय श्री राम 🚩

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प्रिय पाठकों, कैसी लगी यह कथा?

आशा करते हैं कि आपको यह कथा पसंद आई होगी। अगली बार फिर मिलेंगे एक और भक्तिपूर्ण कथा के साथ। तब तक अपना ख्याल रखें, मुस्कुराते रहें, और दूसरों के साथ खुशी बाँटते रहें।

दोस्तों आपको मेरे द्वारा लिखे गये लेख कैसे लगे कृप्या अपनी प्रतिक्रिया कमेन्ट मे जरूर दें।

हर हर महादेव।। प्रभु की कृपा हमेशा सब पर बनी रही। 👋हर हर महादेव! धन्यवाद।

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