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आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा रचित मां शाकुंभरी अष्टकम और मां शाकुंभरी कवच....👇👇

एक बार अवश्य पढ़ना .....

अपने काल में जब आदिगुरु शंकराचार्य जी मां शाकुंभरी सिद्ध पीठ सहारनपुर पधारे तब देवी की महिमा से प्रभावित होकर उन्होंने मां शाकुंभरी अष्टकम और मां शाकुंभरी कवच, स्तोत्र की रचना की।


🙏🚩श्रीशाकुंभर्यष्टकम् 🙏🚩

शक्तिः शांभवविश्र्वरुपमहिमा मांगल्यमुक्तामणि, घंटा शुलमसिं लिपिं च दधतीं दक्षैश्र्चतुर्भिः करैः ॥

वामैर्बाहुभिरर्घ्यशेषभरितं पात्रं च शीर्षं तथा चक्रं खेटकमंधकारिदयिता त्रैलोक्यमाता शिवा ॥  

देवी दिव्यसरोजपादयुगुले मंजुक्कणन्नुपुरा, सिंहारुढकलेवरा भगवती व्याघ्रांबरावेष्टिता ॥

वैडूर्यादि महार्घरत्नविलसन्नक्षत्रमालोज्ज्वला, वाग्देवी विषमेक्षणा शशिमुखी त्रैलोक्यमाता शिवा ॥

ब्रह्माणी च कपालिनी सुयुवती राद्री त्रिशूलान्विता, नाना दैत्यनिबर्हिणी नृशरणा शंखासिखेटायुधा ॥

भेरी शंख मृदंग घोषमुदिता शूलिप्रिया चेश्र्वरी,माणिक्याढ्य किरीटकांतवदना त्रैलोक्यमाता शिवा॥

वंदे देवी भवार्तिभंजनकरी भक्तप्रिया मोहिनी, मायामोहमदान्धकारशमनी मत्प्राणसंजीवनी ॥

यंत्रं मंत्रं जपौ तपो भगवती माता पिता भ्रातृका,विद्या बुद्धिधृती गतिश्र्च सकल त्रैलोक्यमाता शिवा॥ 

श्रीमातस्त्रिपुरे त्वमलणिलया स्वर्गादिलोकांतरे, पाताले जलवाहिनी त्रिपथगा लोकत्रये शंकरी ॥

त्वं चाराघकभाग्यसंपदविनी श्रीमूर्ध्नि लिंगांकिता, त्वां वंदे भवभीतिभंजनकरीं त्रैलोक्यमातः शिवे॥

श्रीदुर्गे भगिनीं त्रिलोकजननीं कल्पांतरे डाकिनीं, वीणापुस्तकधारिणीं गुणमणिं कस्तूरिकालेपनीं ॥

नानारत्नविभूषणां त्रिनयनां दिव्यांबरावेष्टितां, वंदे त्वां भवभीतिभंजनकरीं त्रैलोक्यमातः शिवे ॥

नैर्ऋत्यां दिशि पत्रतीर्थममलम मूर्तित्रये वासिनी, सांमुख्या च हरिद्रतीर्थमनघं वाप्यां च तैलोदकं ॥

गंगादित्रयसंगमे सकुतुकं पीतोदके पावने, त्वां वंदे भवभीतिभंजनकरीं त्रैलोक्यमातः शिवे ॥

द्वारे तिष्ठति वक्रतुंडगणपः क्षेत्रस्य पालस्ततः, शक्रेड्या च सरस्वती वहति सा भक्तिप्रिया वाहिनी ॥

मध्ये श्रीतिलकाभिधं तव वनं शाकम्भरी चिन्मयी, त्वां वंदे भवभीतिभंजनकरीं त्रैलोक्यमातः शिवे॥

शाकंभर्यष्टकमिदं यः पठेत्प्रयतः पुमान् । स सर्वपापविनिर्मुक्तः सायुज्यं पदमाप्नुयात् ॥

॥ इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं शाकम्भर्यष्टकं संपूर्णम् ॥

मंत्र - 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति अन्नपूर्णे नम:।। '

 'ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धनधान्य: सुतान्वित:। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।

 इन मंत्रों को बतौर अनुष्ठान 10 हजार, 1.25 लाख जप कर दशांस हवन, तर्पण, मार्जन व ब्राह्मण भोजन कराएं।

नित्य 1 माला जपें। हवन सामग्री में तिल, जौ, अक्षत, घृत, मधु, ईख, बिल्वपत्र, शकर, पंचमेवा, इलायची आदि लें। समिधा, आम, बेल या जो उपलब्ध हो, उनसे हवन पूर्ण करके आप सुखदायी जीवन का लाभ उठा सकते हैं।


मां शाकंभरी कवच इस प्रकार है: 

शाकम्भर्यास्तु कवचं सर्वरक्षाकरं नृणाम् । यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे कथय षण्मुख ॥ १॥

स्कन्द उवाच – शक्र शाकम्भरीदेव्याः कवचं सिद्धिदायकम् । कथयामि महाभाग श्रुणु सर्वशुभावहम् ॥ २॥

अस्य श्री शाकम्भरी कवचस्य स्कन्द ऋषिः । शाकम्भरी देवता । अनुष्टुप्छन्दः ।

चतुर्विधपुरुषार्थसिद्‍ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥ ध्यानम् - शूलं खड्गं च डमरुं दधानामभयप्रदम् ।

सिंहासनस्थां ध्यायामि देवी शाकम्भरीमहम् ॥ ३॥

अथ कवचम् - शाकम्भरी शिरः पातु नेत्रे मे रक्तदन्तिका। कर्णो रमे नन्दजः पातु नासिकां पातु पार्वती ॥ ४॥

ओष्ठौ पातु महाकाली महालक्ष्मीश्च मे मुखम्। महासरस्वती जिह्वां चामुण्डाऽवतु मे रदाम् ॥ ५॥

कालकण्ठसती कण्ठं भद्रकाली करद्वयम् । हृदयं पातु कौमारी कुक्षिं मे पातु वैष्णवी ॥ ६॥

नाभिं मेऽवतु वाराही ब्राह्मी पार्श्वे ममावतु । पृष्ठं मे नारसिंही च योगीशा पातु मे कटिम् ॥ ७॥

ऊरु मे पातु वामोरुर्जानुनी जगदम्बिका । जङ्घे मे चण्डिकां पातु पादौ मे पातु शाम्भवी ॥ ८॥

शिरःप्रभृति पादान्तं पातु मां सर्वमङ्गला । रात्रौ पातु दिवा पातु त्रिसन्ध्यं पातु मां शिवा ॥ ९॥

गच्छन्तं पातु तिष्ठन्तं शयानं पातु शूलिनी । राजद्वारे च कान्तारे खड्गिनी पातु मां पथि ॥ १०॥

सङ्ग्रामे सङ्कटे वादे नद्युत्तारे महावने । भ्रामणेनात्मशूलस्य पातु मां परमेश्वरी ॥ ११॥

गृहं पातु कुटुम्बं मे पशुक्षेत्रधनादिकम् । योगक्षैमं च सततं पातु मे बनशङ्करी ॥ १२॥

इतीदं कवचं पुण्यं शाकम्भर्याः प्रकीर्तितम् । यस्त्रिसन्ध्यं पठेच्छक्र सर्वापद्भिः स मुच्यते ॥ १३॥

तुष्टिं पुष्टिं तथारोग्यं सन्ततिं सम्पदं च शम् । शत्रुक्षयं समाप्नोति कवचस्यास्य पाठतः ॥ १४॥

शाकिनीडाकिनीभूत बालग्रहमहाग्रहाः । नश्यन्ति दर्शनात्त्रस्ताः कवचं पठतस्त्विदम् ॥ १५॥

सर्वत्र जयमाप्नोति धनलाभं च पुष्कलम् । विद्यां वाक्पटुतां चापि शाकम्भर्याः प्रसादतः ॥ १६॥

आवर्तनसहस्रेण कवचस्यास्य वासव । यद्यत्कामयतेऽभीष्टं तत्सर्वं प्राप्नुयाद् ध्रुवम् ॥ १७॥

॥ इति श्री स्कन्दपुराणे स्कन्दप्रोक्तं शाकम्भरी कवचं सम्पूर्णम् ॥

मां शाकंभरी को दुर्गा का अवतार माना जाता है. इन्हें शक्ति, देवी, पार्वती, जगदम्बा जैसे नामों से भी जाना जाता है. शाकंभरी देवी को शाक या सब्ज़ियों की रक्षक देवी भी कहा जाता है. ये चौहानों और खंडेलवाल समाज की कुलदेवी हैं. शाकंभरी देवी का मंदिर सहारनपुर में और मुख्य मंदिर झुंझुनू के उदयपुर वटी में है

यह था माता शाकंभरी का कवच का पाठ रोजाना करने से अनेक लाभ होते हैं। धर्म अर्थ काम मोक्ष सभी की प्राप्ति होती है और तीनों संध्या जाप करने से माता का सानिध्य प्राप्त होता है। साथ ही जैसे मैंने बताया, इसका एक माला रोजाना 51 दिनों तक करने से माता के यहां सिद्धि प्राप्ति होती है। सिद्धि के विभिन्न स्तर हैं जिनसे अलग-अलग साधक को प्राप्त होता है तो यह था माता का कवच जो कि एक प्राथमिक साधना है और कोई भी इसे कर सकता है। माता बहुत करुणामई है और सदैव प्रसन्न रहती हैं और अपने भक्तों की हर पीड़ा किसी भी परेशानी को नष्ट कर ही देती हैं। जैसे इन्होंने जगत में आए हुए महान संकट को नष्ट कर दिया था। यह था आज का लेख  आप लोगों को पसंद आया है तो लाइक करें। शेयर करें सब्सक्राइब करें आपका दिन मंगलमय हो जय मां पराशक्ति।

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🔱🙏🚩हर हर महादेव! जय सत्य सनातन🔱🙏🚩 जय सनातन धर्म जय जय श्री राम 🚩

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आशा करते हैं कि आपको यह कथा पसंद आई होगी। अगली बार फिर मिलेंगे एक और भक्तिपूर्ण कथा के साथ। तब तक अपना ख्याल रखें, मुस्कुराते रहें, और दूसरों के साथ खुशी बाँटते रहें।

दोस्तों आपको मेरे द्वारा लिखे गये लेख कैसे लगे कृप्या अपनी प्रतिक्रिया कमेन्ट मे जरूर दें।

हर हर महादेव।। प्रभु की कृपा हमेशा सब पर बनी रही। 👋हर हर महादेव! धन्यवाद।

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