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पौराणिक काल की बात है, जब सृष्टि के रचयिता और पालनकर्ता ब्रह्मांड के गूढ़ रहस्यों में व्यस्त थे.....

एक बार अवश्य पढ़ना .....

पौराणिक काल की बात है, जब सृष्टि के रचयिता और पालनकर्ता ब्रह्मांड के गूढ़ रहस्यों में व्यस्त थे, उस समय भगवान शिव कैलाश पर्वत पर गहन ध्यान में लीन थे। उनके साथ माता पार्वती भी थीं, जो हमेशा शिव के साथ रहकर उनकी सेवा में तल्लीन रहती थीं। लेकिन एक दिन कुछ असामान्य हुआ।

माता पार्वती को अचानक अत्यधिक भूख लग गई। भूख की वेदना इतनी तीव्र थी कि उन्होंने भगवान शिव को पुकारा और भोजन की याचना की। परंतु भगवान शिव उस समय गहरी तपस्या में थे और उन्होंने माता की बात का उत्तर नहीं दिया। पार्वती की भूख असहनीय होती जा रही थी, और चारों ओर देखने पर भी उन्हें भोजन का कोई साधन नहीं मिला।

माता पार्वती ने बार-बार भगवान शिव को पुकारा, लेकिन जब उत्तर नहीं मिला, तो उनकी भूख ने उन्हें क्रोधित कर दिया। क्रोध के आवेग में, उन्होंने एक ऐसा निर्णय लिया जिसे इतिहास में कभी नहीं भुलाया गया। माता पार्वती ने अपनी शक्ति का उपयोग करके स्वयं भगवान शिव को ही निगल लिया! यह घटना इतनी असामान्य और अद्भुत थी कि सारा कैलाश पर्वत जैसे थम गया।

जैसे ही भगवान शिव उनके शरीर के अंदर गए, उनकी शक्तियों के कारण माता पार्वती के शरीर से धुआं निकलने लगा। यह धुआं अत्यंत रहस्यमय था, मानो ब्रह्मांड की गूढ़ शक्तियां माता पार्वती के भीतर से प्रकट हो रही हों। उनके शरीर का स्वरूप बदलने लगा। उनकी सुंदरता की जगह एक विकृत और उग्र रूप ने ले लिया। उनकी आंखें तेज चमकने लगीं, और उनके चेहरे पर वैराग्य का भाव उभर आया।

भगवान शिव, जो योग और माया के स्वामी हैं, ने इस स्थिति को समझा। उन्होंने अपनी माया का उपयोग करके माता पार्वती के शरीर से बाहर आने का उपाय किया। जब वे बाहर निकले, तो उन्होंने माता पार्वती के उस अद्वितीय और धूम्र से व्याप्त स्वरूप को देखा। भगवान शिव ने मुस्कुराते हुए माता से कहा:

"हे देवी, आपने मुझे निगल लिया और इस रूप को धारण किया। अब से आपका यह रूप 'धूमावती' नाम से जाना जाएगा। धुएं (धूम्र) से व्याप्त होने के कारण आपका नाम धूमावती होगा।"

उन्होंने आगे कहा:

"जब आपने मुझे निगल लिया, तब आप विधवा का रूप धारण किया। अतः अब आप इस विधवा रूप में ही पूजी जाएंगी। यह रूप दु:ख, वैराग्य, और कठिन परिस्थितियों का प्रतीक होगा।"

भगवान शिव के इन शब्दों के बाद देवी धूमावती का स्वरूप और अधिक गूढ़ और रहस्यमय हो गया। वे एक वृद्ध स्त्री के रूप में प्रकट हुईं, जो विधवा का वेश धारण किए थीं। उनके केश खुले हुए थे, और उनके वस्त्र श्वेत थे। उनके हाथ में एक फटा हुआ झंडा था, जो सांसारिक माया के विनाश का प्रतीक था। उनका वाहन कौवा बना, जो मृत्यु और रहस्यमय शक्तियों का द्योतक है।

भगवान शिव ने देवी धूमावती को यह वरदान दिया कि जो भी सच्चे हृदय से उनकी आराधना करेगा, वह अपने दु:खों से मुक्ति पाएगा। देवी का संबंध ज्येष्ठा नक्षत्र से है, इसलिए उन्हें "ज्येष्ठा" भी कहा जाता है।

ऋषि दुर्वासा, भृगु, और परशुराम जैसे तपस्वियों ने देवी धूमावती की शक्ति को अपनी साधना में पाया। वे सृष्टि के कलह और कठिन परिस्थितियों की देवी मानी जाती हैं। इस कारण उन्हें "कलहप्रिय" भी कहा जाता है।

देवी धूमावती का उग्र स्वरूप भले ही भयावह प्रतीत हो, लेकिन वे अपने भक्तों के लिए अत्यंत कल्याणकारी हैं। उनकी पूजा से भक्तों को दु:ख, दरिद्रता, और जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है। वे उन साधकों को विशेष कृपा प्रदान करती हैं, जो सांसारिक मोह-माया से मुक्त होकर वैराग्य का मार्ग अपनाते हैं।

देवी धूमावती की कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन की कठिनाइयों और दु:खों का सामना करने के लिए धैर्य और वैराग्य का होना आवश्यक है। उनका स्वरूप हमें यह याद दिलाता है कि सांसारिक चीजें क्षणभंगुर हैं, और असली सुख आत्मा की शांति और मुक्ति में है।

यह गाथा अपने रहस्यमय और रोमांचक तत्वों से न केवल तांत्रिक परंपरा में विशेष स्थान रखती है, बल्कि यह हमें जीवन के गूढ़ रहस्यों की ओर भी प्रेरित करती है।

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आशा करते हैं कि आपको यह कथा पसंद आई होगी। अगली बार फिर मिलेंगे एक और भक्तिपूर्ण कथा के साथ। तब तक अपना ख्याल रखें, मुस्कुराते रहें, और दूसरों के साथ खुशी बाँटते रहें।

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हर हर महादेव।। प्रभु की कृपा हमेशा सब पर बनी रही। 👋हर हर महादेव! धन्यवाद।

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