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भगवान विष्णुजी ने हयग्रीव दैत्य का वध कौन से अवतार में किया पढिए यह अनोखी कथा...

एक बार अवश्य पढें .....


भगवान विष्णुजी ने हयग्रीव दैत्य का वध कौन से अवतार में किया पढिए यह अनोखी कथा...

प्राचीनकाल मे हयग्रीव नामक एक दैत्य हुआ उसने माँ भगवती की तपस्या की वो प्रकट हुई तो हयग्रीव बोला, "मुझे अमर होने का वरदान दे दिजिये।"

माँ भगवती ने कहा ये सम्भव नही जिसका जन्म हुआ उसकी मृत्यु होना निश्चित है। तो फिर वो बोला, "अच्छा तो हयग्रीव के हाथों ही मेरी मृत्यु हो। दूसरे मुझे न मार सकें। मेरे मन की यही अभिलाषा है।"

'ऐसा ही हो।", यह कह कर माँ अन्तर्ध्यान हो गईं।

वह दुष्ट देवी के वर के प्रभाव से अजेय हो गया। त्रिलोकी में कोई भी ऐसा नहीं था, जो उस दुष्ट को मार सके। उसने ब्रह्मा जी से वेदों को छीन लिया और देवताओं तथा मुनियों को सताने लगा। यज्ञादि कर्म बंद हो गए और सृष्टि की व्यवस्था बिगडने लगी।

ब्रह्मा जी और अन्य देवता भगवान विष्णु के पास गए,

परन्तु अनंत देव जनार्धन दस सहस्त्र वर्षों के सतत युद्ध के उपरान्त थक गए थे. तब भगवान एक मनोरम स्थान में पद्मासन में विराजमान हो, अपना सिर एक प्रत्यंचा चढे हुए धनुष पर रखकर योगनिद्रा में निमग्र थे।

ब्रह्माजी ने उनको जगाने के लिए वम्री नामक एक कीड़ा उत्पन्न किया उसने प्रत्यंचा काट दी। (पहले वर्मी ने भगवान को जगाने के लिए न कर दिया परन्तु ब्रह्मा जी और देवताओं के बार कहने औऱ सृष्टि के संकट के कारण उसने हाँ किया उसके लिए ब्रह्मा जी ने यज्ञ कुंड से बाहर गिरी हवन सामग्री का अधिकारी बनाया)

उस समय बड़ा भयंकर शब्द हुआ और भगवान विष्णु का मस्तक कटकर अदृश्य हो गया। सिर रहित भगवान के धड़ को देखकर देवताओं के दुख की सीमा न रही।


सभी लोगों ने इस विचित्र घटना को देखकर भगवती की स्तुति की उन्होंने कहा,

"देवताओ चिंता मत करो। मेरी कृपा से तुम्हारा मंगल ही होगा। ब्रह्मा जी एक घोड़े का मस्तक काटकर भगवान के धड़ से जोड़ दें। इससे भगवान का हयग्रीव अवतार होगा। वे उसी रूप में दुष्ट हयग्रीव दैत्य का वध करेंगे।"

  • उनके कथनानुसार उसी क्षण ब्रह्मा जी ने एक घोड़े का मस्तक उतारकर भगवान के धड़ से जोड़ दिया।
  • भगवती के कृपा प्रसाद से उसी क्षण अर्थात अक्षय तृतीया, भगवान विष्णु का हयग्रीव अवतार हो गया।
  • फिर भगवान का हयग्रीव दैत्य से भयानक युद्ध हुआ। अंत में भगवान के हाथों हयग्रीव की मृत्यु हुई।
  • भगवान ने वेदों को ब्रह्मा जी को पुन: समर्पित कर दिया और देवताओं तथा मुनियों का संकट निवारण किया।

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प्रिय पाठकों, कैसी लगी यह कथा?


आशा करते हैं कि आपको यह कथा पसंद आई होगी। अगली बार फिर मिलेंगे एक और भक्तिपूर्ण कथा के साथ। तब तक अपना ख्याल रखें, मुस्कुराते रहें, और दूसरों के साथ खुशी बाँटते रहें।

दोस्तों आपको मेरे द्वारा लिखे गये लेख कैसे लगे कृप्या अपनी प्रतिक्रिया कमेन्ट मे जरूर दें।

हर हर महादेव।। प्रभु की कृपा हमेशा सब पर बनी रही। 👋हर हर महादेव! धन्यवाद। 

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