एक बार अवश्य पढ़ना ....
कुंडलिनी शक्ति, एक आदिम ब्रह्मांडीय ऊर्जा है जिसे सर्प शक्ति भी कहा जाता है. यह रीढ़ की हड्डी के आधार पर स्थित होती है. कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने से आत्म-जागरूकता और आध्यात्मिक विकास की अनुभूति होती है. कुंडलिनी शक्ति से जुड़ी कुछ खास बातें:
- कुंडलिनी शक्ति, हर इंसान में मौजूद होती है, लेकिन ज़्यादातर लोगों में यह निष्क्रिय रहती है.
- कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए योगासन, प्राणायाम, और मुद्राओं का अभ्यास किया जाता है.
- कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने से मानसिक क्षमताएं बढ़ती हैं और आध्यात्मिक अनुभवों में वृद्धि होती है.
- कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने से शांत की भावना बढ़ती है और हृदय और श्वसन क्रिया में सुधार होता है.
- कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का जाप किया जाता है.
- कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए ये उपाय किए जा सकते हैं: आसन का अभ्यास करें, प्राणायाम का नियमित अभ्यास करें, मुद्राएं करें, गुरु की कृपा लें.
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
Kundalini Shakti is a primordial cosmic energy also known as Serpent Power . It is located at the base of the spine. Awakening the Kundalini Shakti leads to self-awareness and spiritual growth. Some special things related to Kundalini Shakti:
- Kundalini Shakti is present in every human being, but it remains inactive in most people.
- Yogasana, Pranayama, and Mudras are practiced to awaken the Kundalini Shakti.
- Awakening the Kundalini Shakti increases psychic abilities and enhances spiritual experiences.
- Awakening the Kundalini Shakti increases a sense of calm and improves cardiovascular and respiratory function.
- The mantra 'Om Namah Shivaya' is chanted to awaken the Kundalini Shakti.
- The following measures can be taken to awaken the Kundalini Shakti: Practice asanas, practice pranayama regularly, do mudras, seek blessings of guru.
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
मैं कुंडलिनी शक्ति हूँ।
मूलाधार चक्र और कुंडलिनी शक्ति
मैं कुण्डलिनी शक्ति हूं। हर किसी के अंदर विराजमान हूं। मुझे सरहदों और धर्मों से कोई लेना देना नहीं है। मैं तो हर जन के मूलाधार चक्र के पास हूँ ही। एक तरह से मूलाधार चक्र मेरा वास स्थान है। लेकिन यह मेरा वास्तविक निवास नहीं है। यहां तो मैं रहती हूं उस जन की इच्छाओं के कारण जिस जन के अंदर मैं हूं। इच्छाएं वो रस्सियां है जिनसे मैं बंधी हुई हूं। जितनी इच्छाएं, उतनी ही रस्सियां और उतने ही बंधन।
तीन रास्तें
सात चक्रों में से पहला चक्र मूलाधार है। मूलाधार चक्र इंसानी रीढ़ की हड्डी की शुरुआत में स्थित है और मैं भी वहीं हूं। एक मार्ग है यहां, जहां मैं स्थित हूँ। इस मार्ग को सुषुम्ना मार्ग कहते है। यहां मेरे होने के मार्ग के साथ साथ 2 मार्ग और भी है। एक मार्ग सूर्य से संबंधित है जिसे पिंगला मार्ग कहते है और दूसरा मार्ग चंद्रमा से संबंधित है जिसे इड़ा कहते है। लेकिन मेरा मार्ग न तो सूर्य जैसा गर्म है और न ही चन्द्र जैसा ठंडा।
जिन मार्गों की यहां बात हो रही है वो दिखने वाले मार्ग नहीं है। अतिसूक्ष्म मार्ग है जिन्हें केवल महसूस किया जा सकता है। ठीक वैसे जैसे हम अपने मन को महसूस करते है।
मूलाधार चक्र और कुंडलिनी
मूलाधार चक्र पर मैं बहुत सारी रस्सियों से बंधी रहती हूं। आमतौर पर तो मेरे बारे में इंसानों को पता ही नहीं चलता। उसकी भी एक वजह है, एक तो बिना गुरु के मैं पकड़ में नहीं आती, दूसरा इंसान की इच्छाएं मुझे सामने आने ही नहीं देती।
इंसान का अहम मूलाधार चक्र पर ही उत्पन्न हो रहा है। मूलाधार चक्र एक तरह से ईच्छा को पैदा करने की मशीन है। यहां इच्छाएं पैदा हुए जा रही है और इंसान उन्हें पूरा करने के लिए भागा जा रहा है।
सारी की सारी इच्छाएं आभासी है और इंसान का अहम ही मन के माध्यम से उसे इन आभासी इच्छाओं को पूरा करने के लिए उत्साहित कर रहा है।
इंसान की चेतना सबसे महत्वपूर्ण है। पहले चेतना है फिर इंसान होने का अहम। इंसान अपनी चेतना को ऐसे ही इच्छाओं में गंवाए जा रहा है। चेतना ही वो शक्ति है जो सीधे तौर पर सत्य से संबंधित है।
मेरी समझ तभी आ सकती है जब इंसान कुछ क्षण के लिए रुक जाए। लेकिन इंसान रुकता ही कहां है। आभासी जगत और आभासी इच्छाएं उसे रुकने नहीं देती।
कुंडलिनी जागरण और मूलाधार चक्र
जब मैं मूलाधार चक्र से उठती हूं तो इंसान को कई तरह के अजीब अजीब अनुभव होते है। जैसे झटके लगना, कभी गर्म और कभी ठंडा लगना। हल्केपन का अनुभव होना।
जैसे ही इंसान अपनी कुछ इच्छाओं की आहुति देता है और अपनी चेतना के कुछ हिस्से को मेरे स्थान मूलाधार चक्र पर लगाता है तो मैं अपने मार्ग सुषमना में ऊपर उठने लगती हूँ। मेरे इस तरह से ऊपर उठने को कुंडलिनी जागरण के नाम से जाना जाता है।
मैं जब जागृत होती हूँ तो इंसान को आनंद के माध्यम से खुशी देकर जाती हूं। गैरजरूरी इच्छाएं मेरे उठने से समाप्त होने लगती है।
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
कुंडलिनी जागृत करने और इससे संबंधित लोगों के कुछ प्रश्नों के उत्तर
कुंडलिनी जागृत होती है तो क्या होता है?
कुण्डलिनी जागरण ना केवल आपके भौतिक जीवन बेहतर करता है बल्कि आपका आध्यात्मिक जीवन भी एक अलग स्तर पर ले जाता है। आपमें आंतरिक शक्ति, शांति और सकारात्मकता बढ़ती है। याद रखें कि कुंडलिनी जागरण का लाभ आपको जीवन भर तभी मिलता रहेगा, जब आप इस जागृति की ऊर्जा को हमेशा जागृत और संतुलित रखेंगे।
कुंडलिनी शक्ति की शक्ति क्या है?
कुंडलिनी नामक एक शक्ति है, जो कुंडलित है। जब वह कुंडलिनी जागृत होती है, तो वह इस खोखली नली से होकर रास्ता बनाने की कोशिश करती है, और जैसे-जैसे वह कदम दर कदम ऊपर उठती है, मानो मन की परत दर परत खुलती जाती है... जब वह मस्तिष्क तक पहुँचती है, तो योगी शरीर और मन से पूरी तरह से अलग हो जाता है; आत्मा खुद को मुक्त पाती है।
कुंडलिनी जागृत करने में कितना समय लगता है?
जब यह ऊर्जा जाग जाती है, तो यह हमारे शरीर और मन के माध्यम से ऊपर की ओर बहती है। कुंडलिनी जागरण की कोई निश्चित अवधि नहीं है। यह व्यक्ति की तैयारी, अभ्यास और मार्गदर्शन के स्तर पर निर्भर करता है। कुछ लोगों को कुछ ही महीनों में कुंडलिनी जागृत हो सकती है, जबकि अन्य को कई वर्षों या यहां तक कि दशकों तक भी लग सकते हैं।
मुझे कैसे पता चलेगा कि मेरी कुंडलिनी जाग गई है? शारीरिक लक्षण....
रात में नींद खुल जाना, बिना कारण बहुत पसीना आना, रोने का मन करना, रीढ़ से ऊर्जा का तीव्र गति से गुजरना कुंडलिनी जागरण के मुख्य लक्षण हैं जिन्हें अक्सर हर मनुष्य महसूस करता है जो कुंडलिनी जागरण की प्रक्रिया से गुजर रहा होता है।
क्या कुंडलिनी जागरण खतरनाक है?
कुंडलिनी योग एक शक्तिपूर्ण योग प्रक्रिया है, जिसमें ऊर्जा को जागृत किया जाता है। अगर इसे सही ढंग से किया जाए, तो यह आपके जीवन को बदल सकता है लेकिन अगर इसे बिना मार्गदर्शन, तैयारी या जबरदस्ती किया जाए, तो यह खतरनाक भी हो सकता है।
कुंडलिनी सिर पर पहुंचने पर क्या होता है?
जब कुंडलिनी शक्ति को देवी के रूप में माना जाता है, तो जब वह सिर पर चढ़ती है, तो वह खुद को (भगवान शिव) की सर्वोच्च सत्ता के साथ एक कर लेती है । तब साधक गहन ध्यान और अनंत आनंद में लीन हो जाता है।
कौन से मंत्र से कुंडलिनी जागृत होती है?
“ॐ नमः शिवाय” एक पवित्र और शक्तिशाली मंत्र है, जिसे शिव का बीज मंत्र भी कहा जाता है। शिव को कुंडलिनी ऊर्जा का संरक्षक माना जाता है। इस मंत्र का जप करने से मन शांत होता है, और ध्यान में गहराई आती है, जो कुंडलिनी ऊर्जा को जागृत करने के लिए एक स्थिर आधार बनाता है। इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जाप किया जा सकता है।
कुण्डलिनी जागरण के समय शरीर में दर्द क्यों होता है?
अगर आप प्राण ऊर्जा को नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं अगर कुंडलिनी जागरण के बाद आप प्राण ऊर्जा को नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं और उसकी वजह से आपके शरीर को पीड़ा और नुकसान पहुंच रहा है, तो आप 'क्यूई गोंग' ऊर्जा तकनीक का सहारा ले सकते हैं।
कौन सा कुंभक कुंडलिनी शक्ति को जगाने वाला है?
प्राणायाम में कुंभक का अभ्यास गर्मी पैदा करता है और इस तरह कुंडलिनी जागृत होती है और सुषुम्ना नाड़ी के साथ ऊपर की ओर जाती है। प्राणायाम द्वारा कुंडलिनी को जगाने का प्रयास करने से पहले व्यक्ति को नाड़ियों और चक्रों का ज्ञान होना चाहिए और पूरी तरह से इच्छा रहित और वैराग्य से भरा होना चाहिए।
7 चक्र जागृत होने के बाद क्या होता है?
कुंडलिनी को जब जागृत किया जाता हैं तब यही सप्त चक्र जागृत होते हैं। इन सात चक्र का जागृत होने से मनुष्य को शक्ति और सिद्धि का ज्ञान होता हैं। ऐसा कहा जाता है की वह व्यक्ति भुत और भविष्य का भी जानकारी हो जाता हैं। विज्ञानं इस बात को नहीं मानता पर हमारे पुराने किताबों और वेदों में इसका जिक्र किया गया हैं।
घर पर कुंडलिनी योग कैसे करें?
अपने सिर को बाईं ओर घुमाते हुए सांस अंदर लें और दाईं ओर सांस बाहर छोड़ें। साँस अंदर लें, मानसिक रूप से सुत का कंपन करें और साँस छोड़ते हुए मानसिक रूप से नाम का कंपन करें। अपना ध्यान तीसरी आँख के बिंदु पर अंदर की ओर रखें। अपनी गति से आगे बढ़ें, अपनी किसी भी अकड़न के अनुसार।
कुंडलिनी मुद्रा कैसे करें?
कुंडलिनी मुद्रा में बैठें और कुछ मिनटों के लिए गहरी साँस लें। या अपने पसंदीदा प्राणायामों में से किसी एक का अभ्यास करें। आप एक मिनट, तीन, पाँच, ग्यारह, तीस या उससे अधिक समय तक अभ्यास कर सकते हैं! जब आप इसे पकड़ते हैं, तो उंगलियों के बीच संबंध महसूस करें।
सबसे शक्तिशाली चक्र कौन सा है? सहस्रार: शीर्ष चक्र .....
इसका प्रतीक कमल की एक हजार पंखुडि़यां हैं और यह सिर के शीर्ष पर अवस्थित होता है। सहस्रार बैंगनी रंग का प्रतिनिधित्व करती है और यह आतंरिक बुद्धि और दैहिक मृत्यु से जुड़ी होती है।
कुंडलिनी तीसरी आंख तक पहुंचने पर क्या होता है?
आंखें अलग हैं, चक्षु अलग है। जब कुंडलिनी को तीसरी आँख के बिंदु पर लाकर रखा जाता है और भौंह के तीनों बिंदुओं को जोड़ दिया जाता है, इस प्रकार संपूर्ण ऊर्जा परिपथ खुल जाता है, तो तीसरी आँख के माध्यम से विभिन्न शक्तियाँ अभिव्यक्त होने लगती हैं । तीसरी आँख का जागरण असाधारण शक्तियों की शुरुआत है।
मुझे कैसे पता चलेगा कि मेरी कुंडलिनी कहां है?
- जब आपको दिव्य दर्शन, सुगन्ध, स्वाद, श्रवण और किसी के आपको छूने की अनुभुति हो ।
- जब आपको परमात्मा की तरफ से सन्देश मिलने लगे ।
- जब मूलाधार चक्र मे स्पंदन होने लगे ।
- जब आपके रौंगटे खड़े होने लगे ।
- जब गहन साधना के दौरान आपकी श्वास चलते चलते रूक जाये ।
कुंडलिनी कैसे जागृत करें? कुंडलिनी शक्ति को जगाने का सबसे अच्छा तरीका है -
साधना या शक्तिपात:( Meditation ) : अगर आप साधना के जरिये अपनी कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत करना चाहते है तो उसके लिएय आपको योग के मार्ग का अनुसरण करते हुये कर्मयोग, भक्तियोग, हठयोग और गुरुकृपायोग को साधना पड़ता है.
स्वाधिष्ठान चक्र के देवता कौन थे?
इस चक्र की देवी दुर्गा और विश्वकर्मा हैं। स्वाधिष्ठान का रंग संतरी है। सूर्योदय का यह रंग उदीयमान चेतना का प्रतीक है।
कुंडलिनी जागृत होने का क्या तात्पर्य है?
कुंडलिनी को जब जागृत किया जाता हैं तब यही सप्त चक्र जागृत होते हैं। इन सात चक्र का जागृत होने से मनुष्य को शक्ति और सिद्धि का ज्ञान होता हैं। ऐसा कहा जाता है की वह व्यक्ति भुत और भविष्य का भी जानकारी हो जाता हैं। विज्ञानं इस बात को नहीं मानता पर हमारे पुराने किताबों और वेदों में इसका जिक्र किया गया हैं।
मंत्र जागृत कैसे करें?
प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है। किसी विशिष्ट सिद्धि के लिए सूर्य अथवा चंद्रग्रहण के समय किसी भी नदी में खड़े होकर जप करना चाहिए। इसमें किया गया जप शीघ्र लाभदायक होता है। जप का दशांश हवन करना चाहिए और ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराना चाहिए।
सात चक्रों के देवता कौन थे?
ज्ञान और शक्ति के देवता गणेश:भगवान गणेश हमारे शरीर में मौजूद सात चक्रों में से पहले चक्र मूलाधार के देवता, कुंडलिनी जागरण गणपति की आराधना से ही संभव
रोज गायत्री मंत्र पढ़ने से क्या होता है?
मन के दुख, द्वेष, पाप, भय, शोक जैसे नकारात्मक चीजों का अंत हो जाता है। इस मंत्र के जाप से मनुष्य मानसिक तौर पर जागृत हो जाता है। साथ ही कहा जाता है कि इस मंत्र में इतनी ऊर्जा है कि नियमित रूप से तीन बार इसका जाप करने से सारी नकारात्मक शक्तियां नष्ट हो जाती हैं। रोजाना तीन बार गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए।
कौन सा चक्र किस भगवान से जुड़ा है?
गणेश, ब्रह्मा और इंद्र मूलाधार चक्र से जुड़े देवता हैं। शक्ति या कुंडलिनी मूलाधार चक्र से जुड़ी देवी हैं। - त्रिकास्थ चक्र: विष्णु त्रिकास्थ चक्र से जुड़े देवता हैं।
गायत्री मंत्र कब नहीं पढ़ना चाहिए?
गायत्री मंत्र का जाप करते समय आपका मुंह कभी भी दक्षिण दिशा की ओर नहीं होना चाहिए। पूर्व दिशा की ओर मुंह करके जाप करना उत्तम माना जाता है। मांस, मछली या मदिरा पान का सेवन करने के बाद कभी भी गायत्री मंत्र का जाप ना करें। ऐसा करने वालों को जीवन में बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
शिव कौन सा चक्र है?
शिव - मुकुट चक्र सहस्रार का देवता सिर के शीर्ष पर स्थित है, और ऐसा माना जाता है कि देवता शिव भी यहीं निवास करते हैं। यह बुद्धि, ध्यान और स्मृति सहित मस्तिष्क के कार्यों को प्रभावित करता है।
औरतों को गायत्री मंत्र क्यों नहीं पढ़ना चाहिए?
स्त्रियों के गायत्री मंत्र का जाप न करने के पीछे का सबसे बड़ा कारण महिलाओं को होने वाला मासिक धर्म है। हिंदू धर्म के अनुसार मासिक धर्म के दौरान स्त्रियों को किसी भी तरह के धार्मिक कार्य और पूजा में हिस्सा नहीं लेना चाहिए। इसलिए स्त्रियों को गायत्री मंत्र का जाप नहीं करना चाहिए।
शिव से बड़ा कौन होता है?
शैव मत के अनुयायी भगवान शिव को सर्वोपरि मानते हैं, तो वहीं वैष्णव मतावलम्बी श्री विष्णु को ही श्रेष्ठ मानते हैं।
लगातार मंत्र जाप करने से क्या होता है?
लगातार मंत्र का जाप करने से भटकता हुआ मन मंत्र पर केंद्रित हो जाता है और इसके प्रभाव से सारे बिगड़े काम बनने लगते हैं. ज्योतिष शास्त्र में कई परेशानियों को दूर करने के लिए मंत्रों के जाप को महत्वपूर्ण बताया गया है. यही कारण है कि सुख-समृद्धि, सकारात्मकता, धन लाभ और सफलता के लिए मंत्रों का जाप लाभकारी सिद्ध होता है.
काली किस चक्र से संबंधित है? चक्र और काली माँ...
काली मूलाधार (मूल) चक्र से जुड़ी हुई हैं, जो हमारी स्थिरता और सुरक्षा की भावना को नियंत्रित करती है। उनके मंत्रों का जाप करने से इस आधारभूत ऊर्जा केंद्र को शुद्ध और सक्रिय करने में मदद मिल सकती है, जिससे शारीरिक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक आधार दोनों को बढ़ावा मिलता है।
मृत्यु मंजरी चक्र क्या है?
देवी के चक्र का नाम 'मृत्यु मंजरी', भगवान शंकर के चक्र का नाम 'भवरेंदु', श्रीविष्णु के चक्र का नाम 'कांता चक्र' और श्रीकृष्ण द्वारा धारण करने वाला चक्र 'सुदर्शन' के नाम से जाना जाता है। इसके निर्माण को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं।
कलयुग में कौन से मंत्र का जाप करना चाहिए?
'ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्'। यह महामृत्युंजय मंत्र है। इस मंत्र को बहुत ही शक्तिशाली और प्रभावशाली माना गया है। इस कलयुग में जो व्यक्ति रोजाना इस मंत्र का जाप करता है, उसे जीवन में निश्चित रूप से लाभ देखने को मिलते हैं।
क्या मृत्यु के समय कष्ट होता है?
ऐसी स्थिति में अंतिम क्षण में मन परेशान होने लगता है और मृत्यु के समय कष्ट की अनुभूति होती है। शास्त्रों के अनुसार अगर मृत्यु के समय मन शांत और इच्छाओं से मुक्त हो तो बिना कष्ट से प्राण शरीर त्याग देता है और ऐसे इंसान की आत्मा को शांती मिलती है।
नाभि चक्र टूटने से क्या होता है?
इसलिए मौत के करीब आने की पहली आहट को नाभि चक्र के पास महसूस किया जा सकता है। नाभिचक्र एक दिन में नहीं टूटता है, इसके टूटने की क्रिया लंबे समय तक चलती है और जैसे-जैसे चक्र टूटता जाता है मृत्यु के करीब आने के दूसरे कई लक्षण प्रकट होने लगते हैं।
देवता बुलाने का मंत्र कौन सा है?
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः' इस मंत्र का नियमित तौर पर जाप करें।
मृत्यु के बाद आत्मा कहाँ जाती है?
यमलोक में आत्मा के 24 घण्टे रहने के बाद आत्मा को पुनः अपने परिजनों के पास 13 दिनों के लिए भेज दिया जाता है, जहां उनका सम्पूर्ण जीवन बीता था।
मृत्यु से पहले क्या दिखाई देता है?
सबसे पहले प्राण इसी स्थान से शरीर से अलग होना शुरू होता है, इसलिए मृत्यु के करीब आने की पहली आहट को नाभि चक्र के पास महसूस होता है। शिव पुराण के अनुसार मृत्यु के कुछ महीने पहले अगर आंखे, मुंह, जीभ, कान और नाक पत्थर के जैसा महसूस होने लगे, तो यह तो यह मौत के नजदीक आने का संकेत होता है।
शिव को बुलाने का मंत्र क्या है?
ओम नमो नीलकण्ठाय नम:।। इस मंत्र का जाप नियमित रूप से करने से रोग, दोष तथा सभी सकंट समाप्त हो जाते हैं. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
(जुड़े रहे और अधिक जानकारी के लिए)
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
प्रिय पाठकों, कैसी लगी यह कथा?
आशा करते हैं कि आपको यह कथा पसंद आई होगी। अगली बार फिर मिलेंगे एक और भक्तिपूर्ण कथा के साथ। तब तक अपना ख्याल रखें, मुस्कुराते रहें, और दूसरों के साथ खुशी बाँटते रहें।
दोस्तों आपको मेरे द्वारा लिखे गये लेख कैसे लगे कृप्या अपनी प्रतिक्रिया कमेन्ट मे जरूर दें।
हर हर महादेव।। प्रभु की कृपा हमेशा सब पर बनी रही। 👋हर हर महादेव! धन्यवाद।
0 Comments