काम और संयम की परीक्षा: हठयोगी और यक्षिणी की रहस्यमयी कथा
सिद्ध साधकों के लिए यह संसार केवल एक माया है, लेकिन कुछ शक्तियाँ ऐसी होती हैं जो साधकों को उनके मार्ग से भटकाने का प्रयास करती हैं। यह कथा एक महान हठयोगी और एक अद्भुत यक्षिणी की है, जिसने योगी से भोग-सुख की इच्छा रखी।
योगी का तप और रहस्यमयी जंगल
प्राचीन काल की बात है। एक महान हठयोगी अपनी साधना में लीन थे। वे एक घने जंगल में स्थित एक गुफा में रहते थे, जहाँ उन्होंने कई वर्षों तक तपस्या की थी। उनकी सिद्धियों की ख्याति चारों ओर फैल चुकी थी। लेकिन वे किसी भी सांसारिक आकर्षण से दूर, केवल आत्मज्ञान की खोज में लगे रहते थे।
एक दिन, जब योगी ध्यानमग्न थे, तभी एक अद्भुत सुंदरी उनके सामने प्रकट हुई। उसके सौंदर्य की कोई उपमा नहीं थी—बड़ी-बड़ी मृगनयनी आँखें, सुकोमल शरीर, और रूप ऐसा कि कोई भी उसे देखकर मोहित हो जाए। यह कोई सामान्य स्त्री नहीं थी, बल्कि एक यक्षिणी थी।
यक्षिणी की इच्छा और योगी की उपेक्षा
यक्षिणी ने योगी को प्रणाम किया और मधुर स्वर में बोली—
"हे महायोगी, मैं तुम्हारे रूप और तप से मोहित हूँ। मैं चाहती हूँ कि तुम मेरे साथ कुछ समय व्यतीत करो। मैं तुम्हें अपार सुख और ऐश्वर्य प्रदान कर सकती हूँ।"
योगी ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और अपनी साधना में लीन रहे। लेकिन यक्षिणी इतनी आसानी से हार मानने वाली नहीं थी। वह बार-बार उनके समीप आई, उन्हें बहकाने के प्रयास किए, लेकिन योगी का संयम अडिग रहा।
यक्षिणी का छल
जब प्रेम और अनुरोध से योगी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, तो यक्षिणी ने छल का सहारा लिया। उसने अपनी दिव्य शक्ति से वातावरण में कामभावना उत्पन्न कर दी। गुफा के चारों ओर मादक गंध फैल गई, पक्षियों के स्वर मधुर हो गए, और शीतल पवन प्रेम की अनुभूति कराने लगी।
एक क्षण के लिए योगी विचलित हुए, लेकिन उन्होंने तुरंत अपनी चेतना को संभाला और यक्षिणी से बोले—
"हे यक्षिणी, तुम्हारी माया अत्यंत शक्तिशाली है, लेकिन मेरी साधना उससे भी अधिक दृढ़ है। तुम मुझे भोग-सुख के जाल में नहीं फंसा सकती।"
यक्षिणी का श्राप और योगी की विजय
यक्षिणी क्रोधित हो गई और बोली—
"हे योगी, तुमने मेरी इच्छा पूरी नहीं की, इसलिए मैं तुम्हें श्राप देती हूँ कि तुम्हारी साधना अधूरी रह जाएगी!"
लेकिन योगी मुस्कुराए और बोले—
"मेरा तप मुझसे कोई नहीं छीन सकता। तुम्हारे मोह का बंधन मुझे बाँध नहीं सकता।"
यह कहकर उन्होंने अपने तेज से यक्षिणी को परास्त कर दिया। पराजित यक्षिणी रोने लगी और अपने अपराध के लिए क्षमा मांगने लगी।
योगी ने कहा—
"हे यक्षिणी, यदि तुम सच में पश्चाताप करना चाहती हो, तो इस मोह-माया के बंधन से मुक्त होकर साधना का मार्ग अपनाओ।"
यक्षिणी ने उनके चरणों में सिर झुका दिया और उसी स्थान पर तपस्या में लीन हो गई।
कथा का सार
यह कथा हमें सिखाती है कि भोग और आकर्षण की परीक्षा हर साधक के जीवन में आती है, लेकिन जो अपने लक्ष्य पर अडिग रहता है, वही सच्ची सिद्धि प्राप्त करता है।
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धन्यवाद
हर हर महादेव।। प्रभु की कृपा हमेशा सब पर बनी रही। 👋हर हर महादेव! धन्यवाद।
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