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बाबा कीनाराम जी की कथा....

 संत श्री कीनाराम जी महाराज


कीनारामजी का जन्म संवत १६५८ वि. भाद्र मॉस के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथी को वाराणसी के चंदौली तहसील स्थित रामगढ़ गाँव में हुआ था । आपके पिता अकबर सिंह रघुवंशी क्षत्रिय थे । कीनाराम अपने तीन भाईयों में सबसे बड़े थे । बचपन से ही आप राम के प्रति अनुरक्त थे । अवकाश के समय आप गाँव के अन्य साथियों समेत राम धुन गाया करते थे ।

उन दिनों बाल विवाह की प्रथा थी । इस प्रथा के अनुसार आपका १२ वर्ष की आयु में विवाह कर दिया गया । विवाह के तीन वर्ष के बाद गौना लाने की तिथी निश्चित की गयी । यात्रा के एक दिन पूर्व आपने अपनी माँ से दूध भात खाने का आग्रह किया ।

माँ बिगड़ गयी-`` कल तुम्हारा गौना है और आज दूध भात मांग रहे हो ? दही भात खा लो``

कीनाराम ने हाथ पकड़ लिया । लाचारी में माँ को दूध भात देना पड़ा । दुसरे दिन जब यात्रा की तय्यारी हो चुकी तो ससुराल पक्ष से समाचार आया कि वधु की मृत्यु हो गयी है ।

माँ ने रोते हुवे कहा-`` कोई न कोई अशुभ होगा, सोच लिया था, तुमने दूध भात क्यूँ खाया । ऐसा जिद्दी लड़का है कि क्या कहूँ ?``

कीनाराम ने कहा-`` माँ, उसके मरने के बाद ही मैंने दूध भात खाया है, विश्वास न हो तो पिताजी से पूछ लो । वह कल शाम को ही मर गयी थी और मैंने दूध भात कल रात को खाया ।``

माँ से ये समाचार पुरे गाँव में फ़ैल गया । लोग इस बात पे आश्चर्य करने लगे आखिर कीनाराम को इस बात का पता यहाँ बैठे कैसे चल गया ?

इस घटना के बाद वापिस विवाह की बात चलने लगे । कीनाराम ने इनकार किया, दबाव बढ़ने पर चुपचाप घर से निकल पड़े । घूमते घूमते गाजीपुर आ गए । उन दिनों गाजीपुर में रामानंदी सम्प्रदाय के अनुयायी संत शिवराम रहते थे । नागरिकों में उनकी प्रसिद्धी थी । कीनाराम को पसंद आया । वे वहीँ रुक गए । सेवा करना और खाली समय में रामनाम जपना । वे चाहते थे कि शिवराम उन्हें दीक्षा दें । और शिवराम सोचते कि अगर कीनाराम दीक्षित हो गया तो मन्त्र लेकर चम्पत हो जाएगा । ऐसा सेवा करने वाला चेला कहाँ से मिलेगा । ये सोच कर टालते रहे । शिव राम जी हमेशा टालते रहे ।

कई महीनों बाद शिवराम बोले -``चलो कीनाराम तुम्हें आज दीक्षा देता हूँ । `` आसन कमंडल देकर बोले, -``तुम गंगा तट पर चलो मैं शौच आदि से निवृत्त होकर आता हूँ ।``

कीनाराम जी ख़ुशी ख़ुशी गंगा तट पर चले गए । नहाकर आसन पर बैठ गए । आचमनी लेकर ध्यान करते हुए अनुभव हुआ की गंगा की लहरें उनके चरण स्पर्श कर रही हैं, तो उठ कर कुछ और ऊंचाई पर बैठ गए । आँख बंद की कि फिर लगा की गंगा की लहरें उनके पैरों को छू रही हैं । फिर और ऊपर बैठ गए । तब भी गंगा की लहरें उनके पैरों तक पहुँच गयी । पीछे शिवराम ये सब देख रहे थे । उनको अपार आश्चर्य हुआ । कि कीनाराम के रूप में ये लड़का कौन आया है ।

इसके बाद शिवराम कीनाराम को लेकर स्थानीय मंदिर में गए और दीक्षा दी । इसके बाद कीनाराम केवेल सेवा और केवल साधन भजन में लग गए ।

इस बीच एक घटना हो गयी । शिवराम की पत्नी का देहांत हो गया । पत्नी चले जाने के बाद शिवराम अस्थिर हो गए । पुनर्विवाह की सोचने लगे । मन में दुविधा होने पर कीनाराम को पूछा ।

कीनाराम ने तुरंत कहा-``महाराज इस उम्र में आपको विवाह शोभा नहीं देता । साधन भजन में समय लगायें तो बेहतर है ।``

शिवराम को ऐसे उत्तर की अपेक्षा नहीं थी । नाराज होकर बोले- `` पत्नी के बिना मेरा काम नहीं चलेगा ।ये सब बखेड़ा मुझसे सम्हाला नहीं जाता ।``

गुरु शिष्य में विवाद बढ़ता ही गया । अंत में कीनाराम ने कहा-``अगर आप पुनर्विवाह करेंगे तो मैं अन्य किसी गुरु की सेवा में चला जाउंगा ।``

शिवराम खिज्लाकर बोले-`` जाना है तो चला जा मैं तेरे ऐसे कृतघ्न का मुख नहीं देखना चाहता ।``

गुरु के प्रति अश्रद्धा होने पर कीनाराम तुरंत वहां से चल पड़े । मार्ग में नईडीह नामक एक गाँव आया । उन्होंने देखा कि एक वृक्ष के नीचे एक बुधिया बेतहाशा रो रही है । कारण पूछने पर बताया कि जमींदार का लगान बकाया हो गया था । उसके प्यादे उसके लड़के को पकड़ कर ले गए हैं और मार रहे हैं ।

कीनाराम ने कहा-`` इस तरह रोने से कहीं लगान चुकता होता है ? चल, मैं तेरे लड़के को बचा लूँगा ?``

बुढिया ने कहा-`` महाराज वह बड़ा जालिम आदमी है । बिना रकम के मानेगा नहीं । आप बेकार में जाकर परेशान होने ।``

अब कीनाराम नाराज हो गए । उन्होंने कहा-`` इस तरह रोने से तेरा लड़का बच जाएगा ? चल, मेरे साथ चल । मैं भी देखूं, कैसा जमींदार है ।``

बाबा को लेकर बुढिया जमींदार के यहाँ पहुंची. कीनाराम ने देखा कि लड़के को हाथ बाँध कर धुप में बिठा रखा है. कीनाराम ने कहा-`` जमींदार साहब आप इस बेवा के लड़के को छोड़ दें.``

जमींदार ने कहा-`` मेरा लगान बाकी है. रकम चुका दीजिये और लड़के को ले जाईये. ``

कीनाराम ने कहा-`` लड़का जहाँ बैठा है वहां तेरी सारी रकम रखी है. किसी मजदूर से खोद कर निकलवा ले.``

इसके बाद उन्होंने लड़के से कहा-``तू इधर आके बैठ बेटा.``

जमींदार को बाबा कि बातों पर विश्वास नहीं हुआ. मजदूर को कह कर खोदवाने पर वहां वांछित रकम मिलने पर उसको घोर आश्चर्य हुआ. और साथ ही भयभीत भी. बाबा कीनाराम के पैरों में आकर गिर पडा.

कीनाराम ने कहा-`` लो माताजी अपने लड़के को सम्हालो कई सालों का लगान चुकता हो गया.``

इस चमत्कार को देखकर बुढिया भी स्तंभित हो गयी. वापिस आते समय भाव विव्हल होकर बोली-`` बाबाजी अब से मेरा लड़का आपकी सेवा में. लगान ना दे पाने पर मेरा लड़का पता नहीं कितने समय तक जमींदार के यहाँ बेगार करता अब आपकी सेवा में रहेगा तो जीवन सफल हो जाएगा.``

पहले तो कीनाराम बाबा राजी नहीं हुए. बुढिया की जिद्द को देखते हुए भगवान् की इच्छा को माना और लड़के को साथ ले लिया. यही उनका प्रथम शिष्य हुआ जिसका नाम था- बीजाराम

यायावरों की तरह घूमते हुए दोनों गिरनार पर्वत पर पहुंचे. आबू पर्वत, गिरनार, हिंगलाज, पुष्कर, वीरभूमि, कामाख्या और हिमालय के अनेक क्षेत्र संतों की साधना भूमी हैं. आज भी संत लोग अलक्ष्य रूप में यहाँ साधना करते हैं.

कीनाराम ने कहा-`` बीजाराम मैं पर्वत पर जा रहा हूँ. जब तक न लौटूं तुम यहाँ इंतज़ार करना. और एक बात याद रखना केवल तीन घर से भिक्षा मांगना, इससे अधिक नहीं. भिक्षा में जितना मिले उससे काम चलाना चौथे घर में मत जाना.``

कहा जाता है इसी पर्वत पर कीनाराम की मुलाक़ात भगवान् दत्तात्रेय महाराज से हुई थी. और उन्हें योग का उपदेश दिया था. इस सम्बन्ध में कीनाराम ने स्वयं कहा है-

पूरी द्वारिका गोमती गंगा सागर तीर

दत्तात्रय मोहि कहं मिले हरण महाभाव पीर

मोहि प्रबोधे विविध विधि त्रिकालग्य भगवान्

अन्तर्हित होते भये बानी सत्य प्रमान ।

कहा जाता है कि नाथ सम्प्रदाय के संत गोरखनाथ तथा वारकरी सम्प्रदाय के संत एकनाथ ने भी यहीं दत्तात्रेय ऋषि का दर्शन किया था । कुछ दिनों बाद गुरु शिष्य गिरनार पर्वत से जूनागढ़ आ गए । यहाँ नवाब का शासन था । नगर में भीख मांगने की मनाही थी । जो व्यक्ति भीख माँगता, उसे पकड़ कर जेल में डाल देते थे । वहां अपराधियों को चक्की चलानी पड़ती थी ।

बीजाराम भिक्षा मांगने गए और पकडे गए । और नियमानुसार उन्हें भी जेल हो गयी । इधर कीनाराम काफी देर हो जाने पर चिंतिति हो उठे । ध्यान लगाने पर देखा तो माजरा समझ में आया । अब वे भी बीजाराम की तरह भीख मांगने निकले । इन्हें भी पकड़ कर जेल में डाल दिया ।

वाह संतों की लीला - अपने को ही पकडवा दिया ।

इन्हें भी एक चक्की चलाने को दी गयी । आपने अपनी चक्की पर एक डंडा मारते हुए कहा-`` चल बेटा, चक्की ।``

चक्की चलने लगी । इसके बाद अन्य संतों की चक्कियों को भी डंडा मार कर उन्हें चालू कर दिया. इस अनहोनी को देखकर पहरेदार भाग भाग कर नवाब तक पहुंचे और सारी घटना बयान की. नवाब पहचान गया और डर गया कि आज फकीर से पाला पड़ा है. फ़टाफ़ट बाबा को दरबार में इज्जत के साथ बुलाया. ऊँचे दर्जे के फकीर हैं कहीं बद्दुआ ना दे दें इसलिए बाबा को प्रसन्न करने के लिए थाली में माफ़ी के रूप में हीरे जवाहरात पेश किये गए. बाबा ने एक उठा कर मुह में डाला और बोले-`` यह न तो मीठे हैं न ही खट्टे. मेरे किस काम के?``

नवाब बोला-`` हजरत जो हुक्म दें वही पेश किया जाएगा.``

बाबा को नवाब की मनःस्थिति का ज्ञान हुआ. हंसकर बोले-`` संत और फकीर मांग कर गुजारा करते हैं. तेरे यहाँ का गुनाह है, ठीक है. अब आइन्दा भीख मांगने वाले फकीर और संत को शासन की ओर से अढाई पाव आटा मुफ्त देनें का हुक्म दे दो.``

इतने सस्ते में छूटते देख नवाब ने तुरंत इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया.

यहाँ से बाबा हिमालय की ओर चले गए. वहां काफी दिनों तक साधना करने के बाद अचानक काशी में प्रकट हुए.

उन दिनों शिवाला मोहल्ले के क्रीम कुंड में बाबा कालूराम रहते थे. बाबा कालूराम पास ही स्थित श्मसान में मुर्दों की खोपड़ियों को चने खिलाया करते थे. एक दिन बाबा कीनाराम घूमते घूमते उस तरफ आये तो ये दृश्य देखा. उन्होंने अपनी शक्ति का प्रयोग किया.

खोपड़ियों का आना बंद हो गया. बाबा कालूराम औघड़ संत थे. ध्यान लगाते ही समझ गए कि यहाँ कीनाराम आयें हैं. जिनके आने की प्रतीक्षा वे काफी समय से कर रहे थे. इधर कीनाराम भी समझ गए कि बाबा कालूराम उच्च स्तर के संत हैं.

हँसते हुए कीनाराम ने कहा-`` बाबाजी आप ये क्या खिलवाड़ कर रहे हैं.? चलिए अपने स्थान ( गद्दी) पर.``

कीनाराम की साधना शक्ति को पहचानने के लिए बाबा कालूराम ने कहा-`` इस वक्त तो मुझे भूक लगी है. क्या तुम अभी ताज़ी मछली खिला सकते हो.``

कीनाराम ने कहा-`` जरुर महाराज. `` फिर गंगा नदी की ओर देखते कहा-`` गंगिया, एक मछली दे जा.``

तुरंत एक मछली नदी से उछल कर इनके पैरों में आ पड़ी. बीजाराम ने उसे पकाया और उन संतों ने मछली खायी.

थोड़ी देर बाद कालूराम की नजर नदी में बहते लाश पर पड़ी और बोले-`` देख तो मुर्दा आ रहा है``

कीनाराम ने कहा-`` ये तो ज़िंदा है``

``ज़िंदा है तो उसे बुला ला``

कीनाराम बोले-`` कहां जाता है, चल इधर.``

वह लाश धीरे धीरे किनारे आकर खड़ी हो गयी. कीनाराम ने कहा-`` खडा होकर क्या देख रहा है? जा अपने घर चला जा.``

कीनाराम की सिद्धी देखकर बाबा कालूराम संतुष्ट हो गए. दोनों उठ कर चल पड़े. कीनाराम को क्रीम कुंड में ले आये और कहा-`` कीनाराम मेरा काम समाप्त हो गया. मैं अब तक तुम्हारे आने की प्रतीक्षा कर रहा था. ताकि ये जागृत स्थान शून्य न रहे. यह जागृत पीठ है. अब तुझे कहीं जाने की जरुरत नहीं है. यहीं रहकर साधना करो. यहीं सबकुछ मिल जाएगा.``

कहा जाता है कि बाबा कालूराम ने उन्हें दीक्षा दी थी. वास्तव में बाबा कालूराम दत्तात्रेय मुनि के अवतार थे. बाबा कीनाराम को गद्दी देने के बाद वे अंतर्धान हो गए.

बाबा कीनाराम की एक विशेषता ये थी कि प्राचीन औघड़ परम्परा से हट कर वे राम कृष्ण की ओर लग गए थे. यही कारण है कि उनकी प्रसिद्धी बहुत हुई. भारत हमेशा से सात्त्विक और राजसिक साधनाओं को आदर की दृष्टि से देखता रहा है. तामसिक साधकों के पास लोग सब तरफ से निराश हो कर ही जातें हैं.

औघड़ों के बारे में प्रचलित है कि वे भूत पिशाच अदि को वश में कर लेते हैं. असल में यह मार्ग अंतर का और परम गोपनीय है. कुछ कुछ साधक अभी भी देखने को मिल जाते हैं. अंतर की शक्ति और महामाया की अराधना का परम गोपनीय मार्ग है और कठिनतम भी. अघोर माने जो घोर ना हो, जो सरल हो.... इस सरलता के पीछे ही सब कुछ छिपा है. साधक गण ये जानते हैं.

बाबा कीनाराम औघड़ होते हुए भी जन सामान्य के निकट प्रिय थे. अंतर से साधक और दयालु थे. उनके कारण ही क्रीम कुंड तथा औघड़ संप्रदाय की ख्याति फैली. आज भी क्रीम कुंड में प्रत्येक रवि-मंगल को महिलाएं अपने बच्चों को सुखंडी का रोग दूर कराने के लिए आती हैं. भाद्रपद शुक्ल षष्टी को यहाँ मेला लगता है.

कीनाराम एक दार्शनिक औघड़ थे. अपनी पुस्तक - विवेक्सार- में एक जगह अपने बारे में कहते हैं- `` मैं ही जीव हूँ, मैं ही ब्रह्म हूँ, मैं ही अकारण निर्मित जगत हूँ, मैं ही निरंजन हूँ और मैं ही विकराल काल हूँ. मैं ही जन्मता हूँ और मरता भी हूँ. पर्वत - आकाश मैं हूँ. ब्रह्मा विष्णु महेश भी मैं ही हूँ. सुमन और उसका वास , तिल और उसका तेल मैं हूँ. बंदन, मुक्ती अमृत हलाहल ज्ञान अज्ञान ध्यान ज्योति मैं हूँ. ``

इस प्रकार उनका लिखा बौधिक पक्ष के लोगों को भी आकर्षित करता आया है ।

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